Friday 21 January 2022

नींबू है नंबर वन साबुन और सनिटिज़ेर से भी ज्यादा कारगर वायरस बैक्टीरिया से लड़ने में, Coronavirus से बचने के लिए नींबू से हाथ धोएं !!


कोरोना वायरस (Corona Virus) से अब आपको बिलकुल घबराने के जरुरत नहीं है. हाथ धोने के लिए अगर आपके पास साबुन या सैनिटाइजर नहीं भी हो तो भी ये जानलेवा वायरस छू नहीं सकता. बस आपको बेहद आसान सा काम करना है. घर में आपको नींबू रखना है. जी हां, सुनकर आपको अजीब लगे लेकिन एक नींबू आपको इस जानलेवा वायरस से बचा सकता है.

 

डाक्टर भी मानते हैं नींबू और राख को सबसे सुरक्षित

पूर्व राष्ट्रपति के चिकित्सक और देश के जाने माने डॉक्टर मोहसिन वली का कहना है कि हाथ धोने के लिए अगर आप नींबू का इस्तेमाल करते हैं तो वायरस आपके करीब भी नहीं फटक सकता है.

भारत में हाथ धोने के लिए नींबू का इस्तेमाल पुरातन काल से ही होता रहा है. बड़े बुजुर्ग भोजन से पहले या शौच के बाद भी घर में नींबू से हाथों को साफ करते थे. डॉ. वली ने आगे बताया कि हाथों को धोने के लिए इन पारंपरिक चीजों का इस्तेमाल भर से कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है.

 

भारतीय परिवारों के लिए वरदान है नींबू

मामले से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि देश में कोरोना वायरस फैलने के बाद ही अचानक बाजार में सैनिटाइजर की कमी हो गई है. लेकिन अभी भी आम लोग ये नहीं समझ पा रहे हैं कि कोरोना वायरस से बचने के लिए हाथ धोना अहम है, सैनिटाइजर या साबुन नहीं. यही वजह है कि ज्यादातर डॉक्टर बार बार हाथ धोने की सलाह दे रहे हैं. ऐसे में दूर-दराज और गांवों में, जहां सैनिटाइजर उपलब्ध नहीं होता है. ऐसे में आप नींबू का रस हाथों में मल कर धो सकते हैं. हाथों को साफ रखने का ये एक सटीक तरीका है.

 

एंटीमाइक्रोबियल है नींबू

2017 में हुए एक शोध के मुताबिक बैक्टीरिया को मारने में नींबू काफी प्रभावशाली है. दि जरनल ऑफ फंक्शनल फूड्स में बताया गया है कि इकोलाई जैसे महामारी से लड़ने के लिए नींबू का रस काफी प्रभावी रहा. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसी भी संक्रमण के दौरान आपको सैनिटाइजर या साबुन नहीं भी मिलता है तो नींबू के रस से हाथ धोकर बीमारियों से बचा जा सकता है.

 

ऐसे करें नींबू से हाथ साफ

जानकारों का कहना है कि हाथों को साफ करने के लिए सबसे पहले नींबू का रस को हथेली पर निचोड़ें. रस को दोनों हातों में अच्छे से मलें. इसके बाद चलते साफ पानी में दोनो हातों को अच्छे से धो लें. किसी साफ कपड़े से हाथों को सुखा लें.

 

हर संकट एक चीज जरूर सिखा जाती है की हमें अपने देसी चीजों और पुराने संस्कार जो अपने बड़ो से विरासत में मिले है उसका सही इस्तेमाल करते रहे आज दुनिया के लोग हाथ जोड़कर लोगो से मिल रहे है जबकि पहले हैंड शेक कर रहे थे हम दूसरे के चीजों को आसानी से अपना लेते है लेकिन हमेशा इस बात का भी ध्यान रखना जरुरी है की अपने देश की देशी चीजों और संस्कार को हमेशा याद रखे चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये क्युकी दुनिया में पहले किसके पास कितना मिसाइल था उस से ताकतवर समझा जा रहा था लेकिन आज इस वायरस ने समझा दिया है की आज जिसके पास मेडिसिन है खाने के लिए अनाज और फल है पिने के लिए शुद्ध पानी है वही ताकतवर है. 

एक्युप्रेशर सिस्टम शरीर के सूचना तंत्र को कैसे कन्ट्रोल करता है?

 

बदलते मौसम में बीमारियों को फैलने का खतरा अधिक होता है । ये बीमारियां आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर आप के शरीर के आंतरिक अंगो को भी प्रभावित करता है जिसके कारण सर्दी-जुकाम ,खांसी और बुखार परेशान करने लगता है । ऐसी परिस्थिति मे शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए निम्न घरेलू उपाय कर सकते है: - 

* निम्बू और अदरक की काली चाय ।

* तुलसी की पत्ती और कालीमिर्च की चाय।

* दो जौ लहसुन ।

* वेजिटेबल सूप

        आदि का उपयोग कर शरीर के इम्यूनिटी पावर को बढ़ा सकते है । एक्युप्रेशर System से भी आप अपने शरीर के Immunity power को Boostup कर सकते है । यदि आप के शरीर का Immunity system ठीक ठाक है तो मौसमी बिमारी तंग करना बन्द कर देगा और आप स्वस्थ रहने लगेंगे ।

तो आईये जानते है एक्युप्रेशर क्या है? 

एक्यूप्रेशर शरीर के विभिन्न हिस्सों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव डालकर रोग के निदान करने की विधि है। चिकित्सा शास्त्र की इस शाखा का मानना है कि मानव शरीर पैर से लेकर सिर तक आपस में जुड़ा है। हजारों नसें, रक्त धमनियों, मांसपेशियां, स्नायु और हड्डियों के साथ अन्य कई चीजें आपस में मिलकर इस मशीन को बखूबी चलाती हैं। अत: किसी एक बिंदु पर दबाव डालने से उससे जुड़ा पूरा भाग प्रभावित होता है। यह भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसके अंतर्गत लगातार अध्ययनों के बाद मानव शरीर में एक से दो हजार ऐसे बिंदु चिन्हित किए गए हैं, जिन्हें एक्यूप्वाइंट कहा जाता है। जिस जगह दबाव डालने से दर्द हो उस जगह दबने से सम्बन्धित बिनदु कि बीमारी दुर होती है।

मानव के शरीर में लगभग 72000 तंत्रिकातंत्र एवं नाडी तंत्र मौजूद है। कुछ तंत्रिका बाल से भी पतले और बारिक है।इसलिए एक्युप्रेशर चिकित्सा का लाभ अनुभवी व जानकार से हीं ले ।

        यदि आप योगा करते हैं तो सुबह उठकर योगा के साथ साथ आपने हाथ और पांव के अंगुलियों को कम से कम 32 सेकंड रबिंग (रगड़ ) करें । हाथ पाँव के अंगुली मेरे बने गाठ के साथ साथ तलहत्थी को भी अंगुठे से दबाब डालें । ऐसा करने से बहुत से बीमारी खत्म होंगे साथ ही साथ शरीर का Immunity power भी बढेगा।


ये हैं एक्यूप्रेशर में हथेली के कुछ प्रमुख बिंदु:



तनाव दूर करने के लिए- हमारी आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव हमें बहुत परेशान करता है। कई बार शारीरिक क्षमता होने के बावजूद मानसिक तनाव के कारण हम कार्य को ठीक तरह से नहीं कर पाते है। ऐसे में आप अंगूठे के इस भाग को 5 मिनट तक दबाए। ये आपकी पिट्यूटरी ग्लैंड को एक्टिव करता है।




थॉयराइड हार्मोंस बैलेंस- थॉयराइड आज लोगों के बीच एक आम समस्य़ा है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों का पूरा जीवन अक्सर दवाइयों के सहारे ही बीत जाता है। अगर आपको भी यही समस्या है तो अपनी हथेली के हिस्से को पांच मिनट तक दबाते रहे। यह थॉयराइड हार्मोंस को संतुलित रखने में मदद करता है। साथ ही इससे हेयर लॉस, स्किन प्रॉब्लम और डिप्रेशन जैसी बीमारियों में मदद मिलती है।



मसल्स रिलैक्स- ऑफिस में दिन भर बैठे रहने या फिर गलत तरीके से सोने आदि के चलते अक्सर लोगों में मसल्स खिंच जाने की समस्या देखी जाती है। कनिष्ठा उंगली के इस प्वाइंट पर प्रेशर डालने से मसल्स रिलैक्स होती है और कंधों के दर्द और कान से जुड़ी समस्या में भी आराम मिलता है।




साइनस की समस्या- अपने हाथों की तर्जनी उंगली के इस ऊपरी हिस्से पर 2-2 मिनट तक दबाने से साइनस, दांत दर्द और अल्सर की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

 






आंखों की समस्या- आंखों की समस्या को दूर करने के लिए तर्जनी उंगली के नीचे और हथेली के इस हिस्से पर रोज पांच मिनट तक दबाएं।





फेफड़ों की समस्या- हथेली के बीचों बीच यहां पर दबाव डालने से फेफड़ों से जुड़े अस्थमा और ब्रोन्काइटिस के खतरे को कम किया जा सकता है।






लिवर की समस्या- हथेली के इस हिस्से पर 5 मिनट दबाव डालने से लिवर की समस्या दूर की जा सकती है।











यूरिनरी ब्लैडर- यूरिनरी ब्लैडर से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए हथेली के इस हिस्से पर 5 मिनट तक दबाये।






दोस्तों अभी हमने विस्तार से एक्युप्रेशर के बारे में कुछ बेसिक बातों को जाना की कैसे एक्युप्रेशर सिस्टम हमारे शरीर के सुचना तंत्र को तकनीक के माध्यम से नियंत्रित करता है लेकिन आप इसे खुद से तभी करे जब आप एक्सपर्ट से सीखें क्युकी आपके स्वस्थ्य शरीर के सारे एक्युप्रेशर पॉइंट एक्टिव होते है और शरीर को जरुरी सूचनाएं आदान प्रदान हमेशा करते रहते है अंदरूनी तकनीक के माध्यम से ऐसे में आप गलत पॉइंट प्रेस करेंगे तब गलत प्रभाव ही दिखेगा हमने विशेष जानकारी के उदेश्य से आपको एक्युप्रेशर के विषय में समझाया है यह भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्ति में से एक है, एक बात हमेशा याद रखे हमेशा एक्सपर्ट की सलाह पर ही एक्युप्रेशर पद्ति का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए करे |

Thursday 20 January 2022

पॉली सिस्टिक ओवेरियन डिजीज (PCOD): अनियमित जीवनशैली के कारण अधिकांशतः महिलाओं में पायी जाने वाली एक आम बीमारी !!

महिलाओं को अपने जीवनकाल में बहुत सी शारीरिक बिमारियों से जूझना पड़ता है. और इन्हीं में से एक PCOS है. अर्थात पोलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम , जिसे PCOD अर्थात पोलिसिस्टिक ओवेरियन डिसीज़ भी कहा जाता है. महिलाओं को होने वाली ये एक आम बिमारी है. 



क्या है ......पोलिसिस्टिक ओवेरियन डिसीज़ (PCOS/ PCOD) ?

महिलाओं को ये बिमारी प्रजनन हार्मोन'स के संतुलन में गड़बड़ी और मेटाबोलिज्म खराब होने पर होती है. हार्मोन'स असंतुलित होने से मासिक धर्म चक्र प्रभावित हो जाता है . साथ ही महिलाओं के तनाव और खराब जीवनशैली के कारण भी यह बिमारी महिलाओं में हो जाती है. खराब जीवनशैली के कारण महिलाओं का मासिक धर्म अनियमित हो जाता है. 


सामान्य स्थिति में प्रतिमाह पीरियड्स के बाद ओवरी में एग्स का निर्माण होता है और अंडे बाहर निकलते है. परन्तु जिस महिला को PCOS की समस्या होती है , उसकी ओवरी में न तो एग्स डेवलप होते है पूरी तरह से और न ही बाहर निकल पाते हैं. 

किसी भी महिला या लड़की के गर्भाशय में मेल हार्मोन एण्ड्रोजन का स्तर बढ़ने से ओवरी में गांठे बनने लगती है , जिससे मासिक चक्र रुक जाता है. पहले के समय में यह समस्या 30- 35 साल की रिप्रोडक्टिव महिलाओं में होती थी परन्तु आज के दौर में भाग -दौड़ भरी दिनचर्या के कारण  महिलायें खुद पर ध्यान नहीं दे पाती हैं , जिसका प्रत्यक्ष असर उनके माहवारी पे पड़ता है. 

PCOS / PCOD के प्रकार:
वैज्ञानिक शोध के अनुसार PCOS  के कई प्रकार है :-

इन्सुलिन प्रतिरोधक PCOS :-
शरीर में इन्सुलिन का स्तर प्रभावित होने से ब्लड शुगर का संतुलन बिगड़ जाता है , जिससे इन्सुलिन ऑवलेशन की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.


रोग प्रतिरोधक सम्बन्धी PCOS :-
जब शरीर में रोग प्रतिरोध क्षमता कम होने लगती है , तो शरीर में ऑटो एंटीबॉडीज का निर्माण होने लगता है , जो शरीर में प्रोटीन के खिलाफ काम करता है , जो एक प्रमुख कारण हो सकता है , महिलाओं में PCOS  की समस्या होने की.

PCOS/ PCOD  के प्रमुख कारण :- 
1. आनुवंशिक :- 
    सामान्यतः हार्मोन'स असंतुलन को ही इस समस्या की मुख्य वजह माना गया है , फिर भी इसे अनुवांशिक भी कहा गया है , क्यूंकि अगर आपकी माँ को यह समस्या है तो संभवतः यह आपको भी हो सकता है. जबकि वैज्ञानिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है. 
2. मेल हार्मोन :- 
     जब महिलाओं की ओवरी में मेल हार्मोन , जिसे एण्ड्रोजन कहा जाता है बढ़ जाता है , तो भी PCOS की  समस्या उत्पन्न हो जाती है . अर्थात जब महिला की ओवरी में मेल हार्मोन का उत्पादन अधिक होने लगता है , तो ओवलूशन प्रोसेस के दौरान एग्स बाहर नहीं निकल पाते हैं, तो इस स्थिति को hyperandrogenism कहा जाता है. 
3.  इन्सुलिन :- 
      वैज्ञानिक शोध में इन्सुलिन को भी  PCOS कि समस्या का एक कारण माना गया है. शरीर में मौजूद इन्सुलिन हार्मोन , शुगर , स्टार्च और भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम करता है. इन्सुलिन के असंतुलित होने से मेल हार्मोन एण्ड्रोजन की मात्रा बढ़ने लग जाती है जिससे ओवलूशन प्रक्रिया प्रभावित होती है , जिससे महिलाओं को PCOS की समस्या का सामना करना पड़ जाता है.
4.  खराब जीवनशैली :- 
भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी , अत्यधिक जंक फूड का प्रयोग , शारीरिक व्यायाम न करना साथ ही आज के दौर में कॉर्पोरेट वर्ल्ड में आए दिन पार्टियाँ होती रहती है जिसमें जॉब करने वाली फीमेल इन पार्टियों को अटेंड करती है , जिसकी वजह से महिलाओं का देर रात तक जागना तथा शराब - सिग्रेट का प्रयोग करना भी महिलाओं की दिनचर्या को बिगाड़ देती हैं . जिसका असर उनकी माहवारी पे पड़ता है और उनमें PCOS  की समस्या उत्पन्न हो जाती है.

PCOS/ PCOD से जुड़ी जटिलताएँ :- 
सही समय पर इलाज न होने पर कई सारी परेशानियाँ आ सकती हैं , जैसे :- 
1. Type -2 डायबिटीज 
2. हाई ब्लड प्रेशर 
3. कोलेस्ट्रॉल 
4. हार्ट रिलेटेड प्रोब्लेम्स 
5. खराब मेटाबोलिज्म 
6. लीवर में सूजन 
7. स्लीप एप्रिनिया यानी सोते समय सांस लेने में दिक्कत 
8. गर्भाशय में असामान्य रक्तस्राव 

9.एस्ट्रोजन हार्मोन के अत्यधिक बढ़ने पर गर्भाशय का कैंसर

10.एक्टोपिक प्रेगनेंसी

 PCOS/ PCOD के लक्षण :-
- अनियमित पीरियड्स 
- योनि से अधिक मात्रा में रक्तस्राव होना 
-  सामान्य परिस्थिति में अंडे  के विकसित होने के बाद अंडाशय में प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन उत्पन्न होने लगता है इसके बाद प्रोजेस्ट्रोन का स्तर कम हो जाता है,  जिससे पीरियड्स शुरू हो जाता है. वहीं , अंडों के विकसित न होने पर गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है , जिसे हाइपरप्लासिआ कहते हैं , परिणामतः महिला को अधिक व लम्बे समय तक रक्तस्राव होता है .
- स्किन का तैलिये होना साथ ही चेहरे पर कील - मुहांसों  का निकलना 
-  अनचाहे बाल का उग आना
-  नेचर में चिड़चिड़ापन आ जाना
-  वजन का बढ़ जाना 
-  बांझपन का आ जाना

PCOS/ PCOD के लिए घरेलू इलाज :- 
PCOS की समस्या से बचना महिलाओं के लिए आसान नहीं होता , फिर भी आहार में बदलाव लाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है . औसतन हर 5 में से 2 भारतीय महिलाओं को इस समस्या से रूबरू होना पड़ता है . आंकड़ों के हिसाब से 60 फीसदी से ज्यादा PCOS  पीड़ित महिलाओं में विटामिन B की कमी पायी जाती है . PCOS की समस्या का समाधान हम कुछ घरेलू नुस्खों को अपना कर भी कर सकते हैं जैसे :-
 1.  दालचीनी :- 
पीसी हुई दालचीनी का एक चम्मच पाऊडर एक गिलास गर्म पानी के साथ लेने से बढ़ते हुए इन्सुलिन के स्तर को रोका जा सकता है . 
2. आलसी :- 
आलसी के बीजों को पीस कर पाऊडर बना लें और इस दो चम्मच पाऊडर को एक गिलास पानी के साथ प्रयोग करें , इससे मेल हार्मोन में कमी आएगी .
3. पुदीने की चाय :- 
पुदीने की चाय एंटी एण्ड्रोजन का काम करती है . पुदीने की कुछ सूखी पत्तियों को पानी में उबालकर उसे  छान लें और पियें , इससे PCOS की समस्या में राहत मिलेगी .
4. मेथी :- 
मेथी शरीर के लिए बहुत उपयोगी है , यह इन्सुलिन के स्तर को बढ़ने से रोकती  है , हार्मोन को संतुलित करती है और मेटाबोलिज्म में सुधार लाती है . तीन चम्मच मेथी के बीजों को 8- 10  घंटे के लिए पानी में भिगो कर रखें तथा फिर उसे पीस कर  शहद के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए . 
5. मुलेठी :- 
मुलेठी का काम एण्ड्रोजन को कम करना होता है , कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करना होता है साथ ही मेटाबॉलिज़्म प्रक्रिया में सुधार लाना होता है . हर दिन सूखी मुलेठी को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से काफी लाभ मिलता है.

स्पीच थेरेपी: अब बोलना नहीं होगा बंद !!



रिसर्च के अनुसार भारत में 7 से 9 प्रतिशत लोगो को बोलने सुनने और समझने में परेशानी होती है इनमे 14 प्रतिशत केवल बोलने से जुड़ी हुई समस्या है स्पेशलिस्ट की माने तो कम उम्र में ही इस पर ध्यान देना चाहिए और जैसे ही पता चले की आपके बच्चे को बोलने सम्बन्धी समस्या है तो निकटम स्पीच थेरेपिस्ट से मिले उनके पास कुछ विशेष तकनीक होती है जिससे बच्चा आसानी से सिख कर बोलना धीरे धीरे शुरू कर देता है हाँ थोड़ा समय तो जरूर लग सकता है |

कुछ लोगो का मानना होता है उम्र बढ़ने पर यह समस्या दूर हो जाती है लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हो पाता कभी -कभी बहुत मुसीबत भी हो जाती है ऐसे में समय का ख्याल रखे की बिता हुआ समय लौटकर नहीं आता है अपने बच्चे को बोलने दे यदि समय पर ऐसा नहीं कर पते है तब स्पीच थेरेपिस्ट की मदद लेने में देर न करे 
आम तौर पर स्पीच थेरेपी प्राइवेट संस्थानों में तो महंगा होता है पर सरकारी हॉस्पिटल में फ्री होता है वहां भी जा सकते है|

Autistic Pride Day 2020: ऑटिज्म क्या है??

 



ऑटिस्टिक प्राइड डे एक ऐसा इवेंट है जो विविधता और अनंत संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए 18 जून को हर साल पूरी दुनिया में मनाया जाता है. यह जागरूकता, स्वीकृति और स्वायत्तता को बढ़ावा देने का दिन है. क्या आप जानते हैं कि ऑटिज्म क्या है और ऑटिस्टिक प्राइड डे क्यों मनाया जाता है? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

ऑटिस्टिक प्राइड डे संदेश फैलाने का दिन है कि ऑटिज़्म से पीड़ित लोग रोगग्रस्त नहीं होते बल्कि अलग होते हैं. यह दिन स्वीकार करता है कि ऑटिस्टिक लोग बीमार नहीं हैं, लेकिन उनके पास विशेषताओं का एक अनूठा समूह है. इस दिन ऑटिज्म बीमारी से ग्रसित लोग अपने लिए बोलते हैं और अनोखे तरीके से मनाते हैं कि ऑटिज्म उनमें से प्रत्येक को प्रभावित करता है.

2005 में एक ऑनलाइन समुदाय द्वारा ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाया गया था. अब यह पूरी दुनिया में मनाया जाता है. हर साल दुनिया भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, एक-दूसरे को जोड़ते हैं और सहयोगी लोगों को प्रदर्शित करते हैं कि ऑटिज़्म से पीड़ित लोग अद्वितीय हैं और इसे उपचार के मामलों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

ऑटिज्म (Autism) क्या है?

ऑटिज़्म एक न्यूरोलॉजिकल विकासात्मक विकलांगता है जो सामान्य मस्तिष्क, संचार, सामाजिक संपर्क, अनुभूति और व्यवहार के विकास को प्रभावित करती है.

ऑटिज्म को स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (spectrum disorder) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसके लक्षण और विशेषताएं विभिन्न प्रकार के संयोजन में दिखाई देते हैं जो बच्चों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते हैं.

कुछ बच्चों को अपने कार्यों को पूरा करने में मदद की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ अपने कार्यों को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित कर लेते हैं.

आपको बता दें कि पहले ऑटिस्टिक डिसऑर्डर, परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (pervasive developmental disorder) अन्यथा निर्दिष्ट और एस्परजर सिंड्रोम (asperger syndrome) का अलग से निदान किया जाता था, लेकिन अब, इन सभी स्थितियों को एक साथ जोड़ दिया गया है और इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम सिंड्रोम (autism spectrum syndrome) कहा जाता है.

ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम सिंड्रोम डिसऑर्डर (Autism spectrum syndrome disorder, ASD) किसी व्यक्ति के जीवन के पहले 3 वर्षों के दौरान दिखाई देता है.

यह मस्तिष्क के सामान्य कामकाज को प्रभावित करता है और इसके कारण किसी व्यक्ति के संचार और सामाजिक संपर्क स्किल्स का विकास प्रभावित हो जाता है.

ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति एक प्रकार के व्यवहार के लक्षण को ध्यान में रखता है और फिर अपनी दैनिक गतिविधियों में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करता है.

रोजमर्रा की गतिविधियों में भी उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लोगों, घटनाओं और स्थानों का एक समूह भ्रमित करता है और उनमें काफी चिंता पैदा करता है.

क्या ऑटिज्म को रोका जा सकता है? (Can Autism be prevented?)

वास्तव में, डॉक्टरों को ऑटिज्म के होने का कारण नहीं पता है, लेकिन उनके अनुसार जीनस (genes) सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं कि क्या बच्चा इसके साथ पैदा होता है. कुछ दुर्लभ मामलों में, बच्चा कुछ जन्म दोष के साथ पैदा हो सकता है, अगर माँ गर्भवती होने के दौरान कुछ रसायनों के संपर्क में आती है. लेकिन डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान यह पता लगाने में सक्षम नहीं हैं कि बच्चे को ऑटिज्म होगा या नहीं. इसलिए, ऑटिज्म को रोका नहीं जा सकता है. आप ऑटिस्टिक डिसऑर्डर वाले बच्चे को होने से रोक नहीं सकते हैं, लेकिन स्वस्थ जीवनशैली के बाद स्वस्थ बच्चे की संभावना बढ़ जाती है.


ऑटिज्म के बारे में मुख्य तथ्य

- लड़कियों की तुलना में लड़कों में इसका चार गुना अधिक बार निदान किया जाता है.

- तीसरा सबसे आम विकासात्मक विकलांगता ऑटिज्म है.

- "एक्शन फॉर ऑटिज्म" ("Action for Autism") के अनुसार अध्ययन में प्रचलन दर 1.7 मिलियन है जो 250 बच्चों में 1 की अनुमानित दर है.

- यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है और ऑटिज्म वाले दो लोग एक जैसे नहीं होते हैं.

- यह देखा गया है कि पिछले 20 वर्षों में ऑटिज्म की दर लगातार बढ़ी है.

- ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति में एलर्जी, अस्थमा, आंत्र रोग, पाचन विकार, लगातार वायरल संक्रमण, चिंता का विकार,  नींद का विकार, प्रतिरक्षा विकार इत्यादि शामिल हैं.

इसलिए, हम कह सकते हैं कि ऑटिज्म एक जटिल neurobehavioral स्थिति है जिसके कारण रोगी को सामाजिक संपर्क, संचार और दोहराव वाले व्यवहार में समस्या का सामना करना पड़ता है. लक्षणों की सीमा के कारण, इस स्थिति को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के रूप में जाना जाता है. ऑटिस्टिक प्राइड डे ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति को खुद के लिए बोलने का मौका प्रदान करता है. साथ ही, हम कह सकते हैं कि विकलांगता के बजाय ऑटिज़्म एक प्रकार का अंतर है और विभिन्न है.


कैल्शियम की कमी को आहार से पूरा किया जा सकता है !!

 



कैल्शियम की जरुरत हर इंसान को होती है, जो जीवित प्राणी है इसकी कमी से हडिया कमजोर होने लगती है और शरीर में दर्द और ऐंठन सी महसूस होने लगता है.

कैल्शियम की कमी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है दांत और हडडी कमजोर होने लगती है, उनमे दर्द, ऐठन और ऑस्टियोपोरोसिस के संकेत भी दिखने लगते है. शरीर का 99% कैल्शियम दन्त और हड्डी में होता है, यह हमारे शरीर के कंकाल की संरचना एवं उनके कार्यो को करने में सहायक होता है, कैल्शियम की कमी होने पर शरीर अपना शारीरिक काम करना बंद करने लगता है, थकन महसूस होता है और हड्डी भी टूट सकता है, कैल्शियम की जरुरत जन्म से होती है जैसे जैसे इंसान बढ़ता है वैसे वैसे इसकी जरुरत भी बढ़ते जाते है ऐसे में जब इंसान वृदावस्था में होता है तो कैल्शियम की जरुरत ज्यादा होती है पर इंसान में इसकी अवशोषित करने की क्षमता घटने लगती है हम मेडिसिन लेने लगते है और जब तक दवा लेते है ठीक रहता है मेडिसिन की गोली बंद करते ही फिर कैल्शियम की प्रोब्लेम्स शरीर में दिखने लगती है, ऐसे में हम कैल्शियम की गोली लेने के बजाये कैल्शियम युक्त आहार लेना चाहिए जिस से की शरीर में नेचुरल तरीके से कैल्शियम बने एवं अवशोषित हो सके यह एक परमानेंट सोलूशन्स है.

दूध एवं इस से बनी चीजों का सेवन करे, सूखे मेवे भी ले सकते है, मूंगफली एवं कच्चा बादाम का सेवन करे, फलो का सेवन करे, मसालों में काली मिर्च का सेवन करे. 


स्वस्थ्य शरीर के लिए हेअल्थी भोजन है अनिवार्य !!

 


विटामिन कैल्शियम प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट्स खनिज लवण इनका सही मात्रा में रोज सेवन करना ज़रूरी है ताकि हमारे शरीर में आवश्यक ऊर्जा बनी रहें और हम स्वस्थ्य महसूस करते हुए रोज मर्रा की जरुरत और अपने कार्यों को करते रहे तो आईये जानते है इन पौष्टिक चीजों के बारे में !




कैल्शियम हमारे लिए बहुत जरूरी है खासकर हड्डियों, मांसपेशियों और दांतों की मजबूती के लिए। इसके लिए शरीर में कुछ एंजाइम और हॉर्मोंन होते हैं जिनके विकास के लिए भी कैल्शियम बहुत जरूरी होता है।


आज हम आपको बताएंगे उस खाद्य पदार्थों के बारे में जिनमें कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है और जिनके सेवन सेकैल्शियम की कमी खत्म हो जाएगी।

 

ये हैं कैल्शियम रिच फूड आइटम्स कैल्शियम का सबसे अच्छा सोर्स दूध को माना जाता है। इसलिए कहा भी जाता है कि नियमित रूप से दूध का सेवन करना चाहिए। एक गिलास दूध में करीब 300 ग्राम कैल्शियम होता है। अगर दूध स्किप हुआ तो समझ सकते हैं कि शरीर में कितने कैल्शियम की कमी हो जाएगी। दांतों के टूटने या गिरने, हड्डियों के कमजोर होने का कारण कैल्शियम की कमी ही है। दूध से बने उत्पाद जैसे कि पनीर और दही में भी खूब कैल्शियम पाया जाता है इसलिए नियमित रूप से इन्हें भी अपने खाने में शामिल करें। दही से ना सिर्फ कैल्शियम मिलता है बल्कि यह हमारे शरीर को इन्फेक्शन से भी बचाती है। चीज (cheese) भी कैल्शियम से भरपूर होती है, इसलिए इसे रोजाना खाएं, लेकिन ध्यान रहे इसकी मात्रा सीमित रखें वरना चर्बीबढ़ सकती है। जानकारी के लिए बता दें कि हर तरह के चीज कैल्शियम से भरपूर होते हैं, इसलिए आप जो चाहें चीज का वो फॉर्म खा सकते हैं। रागी में भी भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। यह हड्डियों को कमजोर होने से बचाता है। टमाटर में विटामिन K होता है और ये कैल्शियम का भी अच्छा सोर्स होता है। इसलिए रोजाना टमाटर को अपनी डाइटमें शामिल करें। टमाटर हड्डियों को तो मजबूत बनाता है साथ ही शरीर में कैल्शियम की कमी को भी पूरी करता है। अंजीर को भी कैल्शियम का अच्छा सोर्स माना जाता है। इसके नियमित सेवन से हड्डियों से संबंधित बीमारियां तो दूर भागती ही हैं साथ ही यह हड्डियों का विकास भी करता है। दरअसल अंजीर में Phosphorus भी होता है और यही तत्व हड्डियों का विकास करता है। शायद ही लोग जानते हों लेकिन तिल में काफी अच्छी मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। कैल्शियम में प्रोटीन भी होता है। सोयाबीन को भला कैसे भूला जा सकता है। सोयाबीन में दूध के बराबर ही कैल्शियम होता है इसलिए इसे दूध के subsitiute के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है यानि जो लोग दूध नहीं पीते अगर वो रोजाना सोयाबीन का सेवन करें तो उनकी हड्डियां कमजोर नहीं होंगी। संतरा और आंवला भी calcium rich foods हैं। इनमें मौजूद तत्व ना सिर्फ हड्डियों को मजबूत बनाते हैं बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। ब्रोकली..यह एक ऐसी सब्जी है जिसे बच्चों से लेकर बड़े-बुजर्ग और महिला-पुरुष सभी को खानी चाहिए क्योंकि दूध और सोयाबीन के बाद अगर किसी पदार्थ में सबसे ज्यादा कैल्शियम है तो वो ब्रोकली ही है। कैल्शियम के अलावा इसमें और भी तत्व होते हैं जैसे कि zinc, phosphorus, dietary fiber, pantothenic acid, vitamin B6, vitamin E, manganese, choline, vitamin B1 और कैरोटीन की फॉर्म में vitamin A भी मौजूद होता है। हरी सब्जियां भी कैल्शियम से भरपूर होती हैं और रोजाना इनका सेवन करेंगे तो शरीर में कैल्शियम की कमी नहीं रहेगी। हरी सब्जियों के सेवन से ना सिर्फ हड्डियां मजबूत होंगी और उनका विकास होगा बल्कि इससे आप खुद को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी बचा पाएंगे। हर तरह के Sea foods में कैल्शियम होता है। Oyster में काफी कैल्शियम होता है और इसका सेवन महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है। बादाम कैल्शियम का रिच सोर्स है। बादाम सिर्फ दिमाग को ही तेज नहीं करता बल्कि हड्डियों और दांतों को भी मजबूत बनाता है और मांसपेशियों को भी तंदरुस्त रखता है। कीवी, नारियल, आम, जायफल, अनानास और सीताफल में खूब कैल्शियम होता है। मुनक्का, बादाम, तरबूज के बीच, पिस्ता और अखरोट कैल्शियम से भरपूर ड्राय फ्रूट हैं। लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे लेकिन कुछ मसाले हैं जिनमें खूब कैल्शियम होता है और अगर नियमित रूप से इनका सेवन किया जाए तो कैल्शियम की कमी दूर की जा सकती है। जीरा, लौंग, काली मिर्च और अजवाइन...ये कैल्शियम रिचमसाले हैं। उसी तरह दालों की अगर बात की जाए तो राजमा, मोठ, छोले और मूंग दाल में भी खूब कैल्शियम पाया जाता है। बाजरा, गेंहू और रागी भी कैल्शियम रिच फूड हैं।

प्रोटीन कई स्वास्थ्य लाभ देता हैं जैसे मांसपेशियों की ताकत देना, हड्डियां मजबूत होना, टिश्यू की मरम्मत, मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा देना, हेल्‍दी प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण करना. इसलिए, हमारी डाइट में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन शामिल करना हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है.

यदि आप पर्याप्त प्रोटीन का सेवन नहीं करते हैं तो इसका सीधा असर आपके स्वास्थ्य पर आता है. प्रोटीन पौधों और पशु स्रोत दोनों में पाया जाता है. पशु स्रोत, जैसे गोमांस, चिकन, मुर्गी, मछली में हाई प्रोटीन होता है. दूसरी तरफ, प्रोटीन के प्रमुख पौधों के स्रोतों में नट्स, बीज, आलू, साबुत अनाज और फलियां शामिल हैं.







यूरिक एसिड (Uric Acid): इसके बढ़ जाने से शरीर में गठिया की समस्या उत्पन्न हो जाती है...

यदि आपके मांसपेशियों में सूजन है या आपके घुटने, कोहनी, कमर या हड्डियों के जोड़ों में दर्द रहता है तो आपको सावधान होने की जरुरत है क्यूंकि आपके शरीर में यूरिक एसिड का लेवल बढ़ गया है, जिससे आपको गठिया होने की सम्भावना बन गई है। 


 Uric Acid (यूरिक एसिड)


यूरिक एसिड एक कार्बनिक यौगिक  है। यह हाइड्रोजन, नाइट्रोजन तथा  ऑक्सीजन से मिलकर बनता है। इसका मॉलिक्यूलर  फार्मूला C5H4N4O3 है। यूरिक एसिड एक केमिकल है जो हमारे शरीर में बनता है साथ ही भोजन के जरिये भी हमारे शरीर में पहुँचता है। हमारे शरीर में बहुत से अंग हैं, जैसे- लिवर, हार्ट, किडनी etc जिनका अलग- अलग काम है। जैसे किडनी का काम बहुत महत्व का है, किडनी शरीर में बनने वाले या भोजन के माध्यम से पहुंचने वाले अनेक केमिकल्स, खनिज और अपशिष्टों को पेशाब के द्वारा छानकर शरीर से बाहर निकल देती है। यूरिक एसिड इन्हीं में से एक केमिकल है।


शरीर में यदि इसकी मात्रा बढ़ने लग जाती है तो किडनी इसे छान कर शरीर से बाहर कर पाने में असमर्थ हो जाती है। किसी कारणवश जब किडनी की छानने की क्षमता कम हो जाती है तब यूरिया यूरिक एसिड में बदलने लगती  है। और यह यूरिक एसिड हड्डियों के बीच में जमा हो जाता है।

शरीर में यूरिक एसिड यदि अधिक बन रहा है और किडनी उसे फ़िल्टर नहीं कर पा रही है तो इसका लेवल ब्लड में हाई हो जाता है। और ये हड्डियों के बीच जमा हो जाता है जिससे गाउट (आर्थराइटिस का एक दर्दनाक रूप है) की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

यूरिक एसिड के बढ़ जाने से शरीर में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जैसे मांसपेशियों में सूजन आ जाना, जिससे शरीर के किसी भी हिस्से में तेज दर्द का अनुभव होता है। विशेषकर घुटनों, गर्दन, कमर, कोहनी जैसी जगहों पर दर्द का एहसास होना। शरीर के किसी भी भाग में जहाँ पे हड्डियों का जोड़ है वहाँ दर्द का होना साधारण बात होती है। यही आगे चलकर गठिया का रूप धारण कर लेता है।

ब्लड में यूरिक एसिड के लेवल की अधिकता को मेडिकल की भाषा में हाइपरयूरिसीमिया (hyperuricemia) कहते हैं 

हमारे द्वारा खाये गए भोजन और शरीर के कोशिकाओं के टूटने की नेचुरल प्रक्रिया के कारण यूरिक एसिड का निर्माण होता है।

यूरिक एसिड मेल में जल्दी बढ़ता है फीमेल की तुलना में साथ ही नॉन-वेजेटेरियन में ज्यादा बढ़ता है वेजेटेरियन की तुलना में।

अधिकांशतः यूरिक एसिड तब बढ़ता है जब शरीर में प्यूरिन अधिक मात्रा में बनने लगती है या भोजन के जरिये इसकी मात्रा शरीर में अधिक चली जाती है।




शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के कुछ संकेत इस प्रकार हैं जैसे  :-

  • जोड़ों में  दर्द होना
  • उठनेबैठने में परेशानी होना
  • हाथपैर की उँगलियों में सूजन  जाना
  • जोड़ों में गांठ की सम्भावना
  • हाथपैर की उँगलियों में असहनीय चुभन वाला दर्द होना
  • किडनी में स्टोन होने की सम्भावना
  • व्यक्ति का जल्दी थक  जाना
  • टॉयलेट में समस्या हो सकती हैं।
  • आनुवंशिक समस्याएं


 शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के मुख्य कारण:-

  • लाइफस्टाइल में चेंज एक प्रमुख कारण हैं यूरिक एसिड बढ़ने का।
  • Diabetes  की  मेडिसिन  से  भी यूरिक एसिड बढ़ता  है।
  • कैंसर की मेडिसिनब्लड प्रेशर की मेडिसिन और पेन  किलर्स का भी डायरेक्ट इफ़ेक्ट होता है यूरिक एसिड बढ़ने में 
  • व्रत रखने वाले लोगो में भी अस्थायी रूप से यूरिक एसिड बढ़ जाता है।
  • जबरदस्ती एक्सरसाइज करना भी यूरिक एसिड को बढ़ने का मौका देना है। 
  • भोजन के माध्यम से शरीर में जाने वाला अधिक प्यूरिन भी यूरिक एसिड को बढ़ा देता है।
  • रेड मीट , सी फ़ूडभिंडी , दाल , राजमा , मशरूमगोभी , टमाटर , अरबीपनीर , सेम ये सारे पदार्थ भी यूरिक एसिड को बढ़ाते है। 
  • पालक , बीन्स ,ब्रेड और बेकरी के खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए।
  • बियर या मादक पेय पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए क्यूंकि ये यूरिक एसिड के लेवल को बढ़ाते हैं।



बढ़े हुए यूरिक एसिड में इनका इस्तेमाल अवश्य करें :-

  • प्रतिदिन 4 से 5 लीटर पानी पियें।
  • कम वसा वाले डेयरी उत्पाद का सेवन करें जैसे : दूध , दही इत्यादि।
  • फलों का सेवन अधिक  मात्रा में करना चाहिए।
  • विटामिन C  का सेवन फायदेमंद होता हैं जैसे : टमाटर ,संतरा, अनानास etc।
  • प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल कम ही मात्रा में करना चाहिए जैसे : दाल ,मछली इतियादी


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