Monday 13 December 2021

फिशर(Fissure): कारण, लक्षण एवं घरेलु उपचार

 

फिशर(Fissure): कारण, लक्षण एवं घरेलु उपचार

एनल फिशर/फिशर एक गंभीर शारीरिक रोग है। फिशर इंग्लिश शब्द है। फिशर का अर्थ ‘दरार’ होता है। फिशर रोग की स्थिति में गुदा द्वार (एनस) के आसपास दरार बन जाती है इसीलिए इसे ‘दरार’ या ‘गुदाचीर’ भी कहते है। लेकिन यह फिशर के नाम से प्रचलित है।



पाइल्स और फिशर का फर्क जानना जरुरी है। कई बार पाइल्स और फिशर में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। फिशर भी गुदा का ही रोग है, लेकिन इसमें गुदा में क्रैक(दरार) हो जाता है। यह क्रैक छोटा या बड़ा दोनों हो सकता है और कभी - कभी इतना बड़ा यह क्रैक होता है कि इससे खून आने लगता है।


तो आइये जानते हैं के फिशर बारें में …

फिशर क्या है?

एनल फिशर/फिशर एक गंभीर शारीरिक रोग है। फिशर इंग्लिश शब्द है। फिशर का अर्थ ‘दरार होता है। फिशर रोग की स्थिति में गुदा द्वार (एनस) के आसपास दरार बन जाती है इसीलिए इसे ‘दरार’ या ‘गुदाचीर’ भी कहते है। लेकिन यह फिशर के नाम से प्रचलित है।

मल गुजरने के दौरान गुदा के निचले भाग में एक अस्तर आंसू दर्द होता है।गुदा फिशर्स आमतौर पर शुरूआती दौर में  उचित उपचार के साथ घर पर ठीक कर सकते हैं। इसे तीव्र या अल्पकालिक फिशर कहा जाता है। यदि गुदा फिशर 12 सप्ताह के बाद ठीक नहीं होता है, तो यह एक पुराना फिशर हो सकता है। जिसे दीर्घकालिक फिशर कहा जाता है और इसे डॉक्टर्स के इलाज की आवश्यकता होती है। यह इलाज योग्य समस्या है। यह बीमारी किसी भी एज ग्रुप के व्यक्ति को हो सकती है। लोगों के सभी आयु वर्ग प्रभावित हो सकते हैं, साथ ही स्वस्थ और युवा लोग भी प्रभावित हो सकते हैं।

फिशर/दरार/गुदाचीर/अर्श का शाब्दिक अर्थ है – ऐसा रोग जो किसी दुश्मन की तरह हमेशा कष्ट देता रहे। ऐसा इसलिए बोला जाता है क्योंकि इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को असहनीय दर्द होता है। सामान्य रुप में इसे सूखी बवासीर के नाम से भी पहचाना जाता है लेकिन यह रोग बवासीर से अलग होता है।

एनल फिशर किसी गम्भीर रोग से जुड़ा नहीं होता। यह एक साधारण बीमारी है। जबकि कभी-कभी एनल कैंसर एनल फिशर के रूप में उत्पन्न हो जाता है।

एनल फिशर की कुछ जटिलताएं हैं, जैसे-

क्रॉनिक एनल फिशर(Chronic Anal Fissure)- एनल फिशर में गुदा क्षेत्र के आस-पास जो दरारें पड़ी होती हैं, वह और भी गम्भीर हो जाती हैं। समय के साथ-साथ इसमें फिशर की जगह पर एक विस्तृत निशान वाले ऊतक या टिशु पैदा हो सकते हैं।

गुदा नासूर (Anal fistula) इसमें आस-पास के अंगों से कुछ असामान्य नलिकाएं गुदा नलिका में शामिल हो जाती हैं।

गुदा स्टेनासिस(Anal Stenosis)- गुदा स्टेनोसिस में गुदा की नलिका असामान्य तरीके से संकुचित होने लगती है।

फिशर के कारण:

  • फिशर होने के बहुत सारे कारण हैं जो मुख्य रूप से रहन-सहन और खान-पान पर निर्भर करता है। अधिक फ़ास्ट फूड खाने से भी फिशर होने की संभावना बनी रहती है।
  • अधिक मिर्च मसाले और मैदा से बने भोज्य पदार्थ भी फिशर होने का न्यौता दे सकते हैं।
  • फिशर होने कारणों में दवाइयों के साइड इफेक्ट भी शामिल है।
  • गुदा व गुदा नलिका की त्वचा में क्षति होना फिशर का सबसे सामान्य कारण है। ज्यादातर फिशर वैसे लोगों को होता है जिन्हें कब्ज़ की समस्या होती है। विशेष रूप से जब कठोर व बड़े आकार का मल गुदा के अंदर से  गुज़रता है, तो वह गुदा नलिका की परतों को नुकसान पहुँचा देता है।
  • लगातार दस्त होना।
  • इम्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज जैसे: Crohn's Disease, Ulcerative Colitis।
  • लम्बे समय तक कब्ज़ रहना।
  • एनल स्फिंटकर की मांसपेशियां असामान्य रूप से टाइट होना, जो आपकी गुदा नलिका में तनाव बढ़ा सकती है। जिसकी वजह से एनल फिशर होने की संभावना बढ़ सकती है।
  • फाइबर युक्त आहार का सेवन कम करना।
  • गुदा में किसी कारण से खरोंच लग जाना।
  • गुदा और मलाशय में सूजन होना।
  • कम पानी पीना फिशर रोग होने की संभावना को बढ़ा देता है। 
  • अधिकतर समय बैठे रहने वाले लोग और शारीरिक श्रम नहीं करने वाले लोगों को फिशर रोग हो सकता है।
  • मलाशय में कैंसर के कारण भी फिशर होने की सम्भावना होती है।
  • मलत्याग करने के बाद गुदा को कठोरता पूर्ण तरीके से पोंछना या साफ करना।

NOTE: इस रोग का खतरा गर्भवती महिलाओं को अधिक रहता है। गर्भावस्था में गर्भाशय के दबाव के कारण फिशर होने की संभावना ज्यादा होती है। गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के वक्त अगर पेरिनियम और बेहतर सपोर्ट न प्राप्त होने पर Mucosa प्रभावित होता है जिसके कारण फिशर रोग होने की संभावना होती है।

फिशर के लक्षण:

फिशर के निम्नलिखित लक्षण हैं-

  • मल त्याग के दौरान दर्द या गंभीर दर्द का एहसास होना।
  • मल त्याग के बाद भी दर्द होना जो कई घण्टों तक रह सकता है।
  • मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग का दिखाई देना। मल त्याग के समय खून का आना सामान्य होता है।
  • गुदा के आस-पास जलन और खुजली होना।
  • गुदा के आस-पास के क्षेत्र में तीव्र जलन होना।
  • फिशर के पास त्वचा पर मस्से दिखाई देना।
  • लम्बे समय तक कब्ज़ का रहना।
  • लगातार दस्त का एहसास होना।
  • कभी-कभी यौन संचारित संक्रमण जैसे कि सिफिलिस या हर्पीस, जो गुदा एवं गुदा नलिका को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • एनल स्फिंक्टर की मांसपेशियां असामान्य रूप से टाईट होना, जो आपकी गुदा नलिका को संक्रमित कर सकती है और नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • बुजुर्गों में रक्त संचार धीमा हो जाता है, जिससे उनके गुदा नलिका में तनाव बढ सकती है। यह स्थिति एनल फिशर के लिए बहुत संवेदनशील बना सकती है।
  • फिशर के रोगी को गूदे से मवाद निकलने लगता है जो पतले पानी जैसा होता है।

फिशर का घरेलु उपचार:

  • फाईबर युक्त आहार का सेवन करना ।
  • नियमित व्यायाम करना ।
  • तरल पदार्थ का सेवन अधिक से अधिक मात्रा में करना।
  • आहार में फल, सब्जियां, सेम और साबुत अनाज आदि को शामिल करना ।
  • मल त्याग के दौरान दर्द को कम करने के लिए मल को नरम करने वाली किसी मेडिसिन आदि का प्रयोग करना।
  • एक टब में गर्म पानी डालकर उसमें 20 मिनट तक बैठने से काफी आराम मिलेगा। ऐसा प्रतिदिन 2 से 3 बार करें। कुछ हफ्तों तक ऐसा करने से क्षतिग्रस्त भाग के दर्द को कम कर सकते हैं।
  • मल त्याग करने से बचने की कोशिश न करें। साथ ही बिना इच्छा के मल त्याग करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना स्थिति को और बदतर बना सकता है और दर्दनाक स्थिति पैदा कर सकता है।
  • फिशर में हल्का गरम पानी से नहाना गुणकारी होता है।
  • फिशर में नारियल तेल का इस्तेमाल प्रभावित हिस्से पर दिन में कम से कम 4-5 बार लगाना चाहिए।
  • फिशर में सेब के सिरके का उपयोग करना लाभकारी साबित होता है। सेब के सिरके में पेक्टिन होती है। इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है। सेब का सिरका कब्ज ठीक करने का बेहद कारगर घरेलू उपाय है। इसका उपयोग करने से मल त्याग बहुत आसानी से होता है।

फिशर के सभी मामले घरेलु इलाज से ठीक नहीं हो पाते। यदि एनल फिशर की समस्या 8 से 12 सप्ताह तक रहती है। घरेलु देखभाल के तरीकों से फिशर ठीक न होने पर, उपचार के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।



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